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कण्ठ-कण्ठ में एक राग-स्वर, अबकी बार मोदी सरकार

अभिनव रचना
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अटल भाव ले मोदी बढ़ता।
देख सिंह शावक बन जाता।
मँहगाई, भ्रष्टाचार के कीचड़ में
सुगन्धित कमल उगाता॥
लोगों के दिल में तो देखो
धुँआ उठ रहा है भारी।
लोकतन्त्र की बात न करते
करते विरोध की तैयारी॥
पर विरोध करने से भाई
देश नहीं चला करता है।
चलता देश उस तूलिका से
जिसमें सृजन-क्षमता है॥
कच्छ के नमक में भी
जिसने मीठाजल पहुँचाया।
विकास की अमिट अलख
हर ढ्यौढ़ी पर जलाया॥
रोक सके उस अश्वत्थ को
जो जग का आश्रय बनता।
नहीं किसी में है इतना बल,
नहीं किसी में इतनी क्षमता॥
जड़ से उगे हुये पौधे को,
विस्तृत जिसकी सभी शिरायें।
रोक सके न कोई उसको,
जिसका मन हो वे आ जायें॥
ये गरजते मेघ नहीं हैं,
जो छा कर चलते बनते हैं।
स्वर में है जो घोर-घर्जना
वैसे छाते और बरसते हैं॥
इनके बल को मत ललकारो
देश इन्हें रहा निहार।
कण्ठ-कण्ठ में एक राग-स्वर
अबकी बार, मोदी सरकार॥

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